Friday, December 27, 2024
Advertisement
  1. You Are At:
  2. News
  3. Articles
  4. Upma Singh
  5. Dev Anand

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया...

Upma Singh

"आना जाना हमेशा अपने हाथ में थोड़े ही रहता है दोस्त. इंसान सोचता है मैं उधर चलूं, किस्मत कान पकड़कर उधर ले जाती है. सोचता है इधर चलूं, नाक पकड़कर उधर खींच ले जाती है."

ये सिर्फ एक कलाकार के डॉयलॉग नहीं है, उसकी सच्चाई है, उसकी जिंदगी है, उसकी रूमानियत है. जी हां, लाहौर से ट्रेन पकड़कर एक शख्स मुंबई आता है. अपना सब कुछ दांव पर लगाता है. मां-बाप, भाई-बहन और यहां तक कि अपनी पहली मोहब्बत भी. जेब में तीस रूपए लेकर फ्रंटियर मेल में सवार बीस साल का नौजवान छोरा अपनी किस्मत का सिक्का आजमाने सीधे मायानगरी के लिए निकल पड़ता है. ट्रेन की रफ्तार बढ़ती जाती है, पर उस गोरे-पतले छरहरे बदन वाले शख्स का सबकुछ पीछे छूटता जाता है. उसे खुद भी नहीं पता था कि जिसे वो पीछे छोड़ रहा है, वो तो कुछ नहीं, बल्कि आने वाले दिन में उसकी किस्मत पूरे संसार को उसका दीवाना बना देगी.

सिर हिलाना, एक तरफ झुककर डांस करना, गले में स्कार्फ औऱ सिर पर टोपी, ये सारे अंदाज किसी फिल्म के स्क्रिप्ट की मांग नहीं थे. बल्कि ये बॉलीवुड के एवरग्रीन रोमांटिक सुपरस्टार देव आनंद का खुद का स्टाइल था. जिसे देखकर हर कोई देव आनंद साब का फैन हो गया. जिसका नाम आते ही ज़हन में ज़िन्दादिली, रोमांस, स्टाइल और जोश से भरे एक शख्स की तस्वीर उभर जाती है. जो अपने बेहतरीन अंदाज और खूबसूरती की वजह से दुनियाभर में अपने लाखों फैंस के दिल पर आज भी राज करता है, उसी का नाम देव आनंद है.

अपने करियर में 110 से भी ज्यादा फिल्में करने वाले देव साहब ने कामयाबी की ऐसी ऊंचाइयों को छुआ कि, वो शब्द जिसे स्टारडम कहते हैं, उसके भी मायने बदल गए. देव आनंद, जिसकी जिंदगी पल-पल बहती एक कलकल नदी के समान थी, उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया. छह दशकों में न जाने कितनी पीढ़ियां, विचार और नायक बदल गए, मगर कुछ नहीं बदला तो वो था देव साहब का अंदाज़, इसीलिए उन्हें सदाबहार अभिनेता का खिताब मिला.

सितम्बर 1923 में पंजाब के गुरदासपुर में जन्में देव आनंद ने अपनी पढ़ाई लाहौर के सरकारी कॉलेज से की. पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने के लिए देव आनंद मुंबई आ गए. नौकरी के साथ ही देव साहब अपने बढ़े भाई चेतन आनंद के साथ इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन से जुड़ गए, जिसके तुरंत बाद देव साहब को 'हम एक हैं' फिल्म का ऑफर मिल गया और इसी के साथ 1946 में देव साहब ने बॉलीवुड में अपना पहला कदम रखा. फिल्म 'हम एक हैं' में देव साहब के साथ मुख्य भूमिका में थीं सुरैया जो उस समय की नंबर वन हीरोइन और गायिका थीं, और जब तक 1947 में देव साहब की दूसरी फिल्म 'ज़िद्दी' रिलीज़ हुई वो एक सुपर स्टार बन चुके थे. इन फिल्मों की सफलता के बाद देव साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

देव साहब खुद को काफी खुशनसीब मानते थे कि करियर के शुरूआत में ही उन्हें एक बड़ी अदाकारा के साथ काम करने का मौका मिला. 'हम एक हैं' मिला कर इस जोड़ी ने करीब सात फिल्मों में साथ काम किया. इंही में से एक फिल्म 'विद्या' के एक गाने 'किनोरे-किनारे चले जाएंगे..' की शूटिंग के दौरान हुए हादसे में देव साहब ने सुरैया की जान बचाई, जिसके बाद सुरैया को देव आनंद से प्यार हो गया. देव आनंद ने समाज की परवाह छोड़कर ज़माने के आगे अपने प्यार का इज़हार कर तो दिया, लेकिन मज़हब की दीवारों ने दो प्रेम करने वालों को जुदा कर दिया, जिसके बाद सुरैया ने किसी से भी शादी न करने का फैसला किया. इसके अलावा दोनों ने साथ में फिल्में करना भी छोड़ दिया.

हालांकि ये ब्रेकअप एक तरह से देव साहब के लिए फायदेमंद ही साबित हुआ, क्योंकि इसके बाद फिल्मों में उन्हें पहचान मिलने लगी, वर्ना फिल्म की सफलता का अधिकतर श्रेय सुरैया को ही मिलता था, आखिरकार वो सुपरस्टार जो थीं. ब्रेकअप का दुख कम और फिल्मों में मिलती पहचान ने देव साहब की ज़िंदगी को थमने नहीं दिया और वर्सटाइल देव आनंद ने एक के बाद एक अनेक हिट फिल्में दी.
सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे देव साहब ने 1949 में निर्माता बनने का निर्णय लिया और इसी के साथ बैनर 'नवकेतन' की शुरूआत हुई. 2011 तक 'नवकेतन' के तले करीब 35 फिल्में बन चुकी है.

1951 में 'नवकेतन' बैनर के तले आई फिल्म 'बाज़ी' का निर्देशन किया देव आनंद के दोस्त गुरूदत्त ने. इस फिल्म में देव साहब के साथ नज़र आईं कल्पना कार्तिक, जिनकी ये पहली फिल्म थी. फिल्म 'बाज़ी' की अपार सफलता के बाद देव साहब और कल्पना को एक साथ कई और फिल्मों का ऑफर मिलने लगा और सुपर हिट ऑन स्क्रीन जोड़ी को आखिरकार हक़ीकत में फिल्म 'टैक्सी ड्राइवर' की शुटिंग के दौरान प्यार हो गया. और 1954 में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए.

1950 और 1960 का दशक देव साहब के लिए सिर्फ और सिर्फ कामयाबी लेकर आया. इस दौर में आईं उनकी सभी फिल्में सफल रही और अपनी अलग पहचान के चलते हर किसी के लिए स्टाइल आइकन बन गए.  खासकर फिल्म 'हीरा पन्ना' और 'हरे राम हरे कृष्ण' में देव साहब ने अपने लुक्स के साथ जितने भी प्रयोग किए वो काफी हद तक सफल रहे और इसी के साथ स्कार्फ का फैशन आया. देव साहब के स्कार्फ पहने के तरीके ने तो उस दौर में तहलका मचा दिया था. अगर आप शाहरुख की फिल्म 'मोहब्बते' और देव साहब की फिल्म 'हीरा पन्ना' देखें तो आपको पता चलेगा कि कंधे पर स्वेटर डालने का ट्रेंड शाहरुख ने नहीं बल्कि करीब 40 साल पहले देव साहब ने ही शुरू किया था. ये सारे ट्रेंड शुरू करने वाले देव साहब ने इन सभी को सिर्फ रील ही नहीं बल्कि अपनी रियल लाइफ में भी अपनाया था.

यही वो दौर थी जब देव साहब की एक के बाद एक कई सफल फिल्में आईं. 'बाज़ी' (1951), 'हमसफर' (1953), 'टैक्सी ड्राइवर' (1954), 'मुनीमजी' (1955), 'सीआईडी' (1956), 'पेयिंग गेस्ट' (1956), 'नौ दे ग्यारह' (1957), 'काला पानी' (1958), 'काला बाज़ार' (1960), 'जाली नौट' (1960), 'बम्बई का बाबू'(1960), हम दोनों (1961), गाइड (1965), ज्वेल थीफ़ (1967), जैसी कई और फिल्मों को दर्शकों ने खूब सराहा.

इतना ही नहीं उनके लुक्स, स्टाइल और ऑन स्क्रीन रोमांटिक छवी के कारण देव साबह पर लड़कियां फिदा थीं. 'अभी न जाओ छोड़कर..', 'खोया खोया चांद..', 'आंखों ही आंखों में इशारा हो गया..', 'है अपना दिल तो आवारा..', 'दिल पुकारे आरे-आरे-आरे..' और न जाने ऐसे ही कितने गाने जिन्हें देख कर देव साहब की लड़कियां दीवानी हो गई थीं, वो भी पागलपन की हद तक. खासकर जब लड़कियों ने देव साहब को काले सूट में देखा तो अपने प्यार का इज़हार करने के लिए खून से ही खत लिखने शुरू कर दिए, जिसके बाद किसी भी पब्लिक फंक्शन में देव साहब के काले रंग का सूट पहनने पर ही बैन लगा दिया गया.

सभी के दिलों पर राज करने वाले एक्टर देव आनंद 1970 में आई फिल्म 'प्रेम पुजारी' के साथ निर्माता और निर्देशक भी बन गए. इस फिल्म की अपार सफलता से देव आनंद को प्रोत्साहन मिला और उनकी अगली फिल्म आई 'हरे राम हरे कृष्ण', जिसमें उन्होंने नए चहरे को लॉन्च किया और ये थीं जीनत अमान. एक तरफ 'हरे राम हरे कृष्ण' की अपार सफलता और इसकी चकाचौंध में मदहोश देव आनंद को अपनी इस खोज, यानि ज़ीनत अमान, से प्यार हो गया. अपनी इन्हीं जज़बातों को देव साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में बताते हुए लिखा, "मुझे खुशी होती है जब अखबारों और पत्रिकाओं में फिल्म की सफलता के साथ-साथ हम दोनों का नाम रोमांटिकली जोड़ा जाता है."

तकरीबन सभी जानते थे कि देव साहब को जीनत अमान से प्यार हो गया था, मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था. देल साहब ने ज़ीनत से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए मिलने का फैसला किया, लेकिन मुलाकात से पहले नशे में धुत राज कपूर की बाहों में ज़ीनत अमान को देख कर देव आनंद को गहरा सदमा पहुंचा.

सुरैया और ज़ीनत के अलावा देव साहब के और भी कई अफेयर्स रहे. जहां तक अपने अफेयर्स की बात है, इसके बारे में देव साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'रोमान्सिंग विद लाइफ़' में लिखा था कि "मैं वास्तविक जीवन में एक स्कर्ट चेज़र नहीं हूं, महिलाएं हमेशा सामने से पहल करती थीं और मैं बस जवाब देता था."

अपने करीब 65 सार के पूरे करियर में देव साहब ने कुल 114 हिंदी फिल्मों में काम किया जिनमें से 104 में उन्होंने सोलो लीड रोल प्ले किया. देव साहब ने कुल 19 फिल्में डायरेक्ट की जिनमें 7 सुपर हिट रही और 35 फिल्में प्रोड्यूस की, जिनमें 18 फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. बहुत कम लोग जानते हैं कि देव साहब को कहानी लिखने का भी शौक था, उन्होंने कुल 13 फिल्मों की कहानी लिखी थी. इसके अलावा उन्होंने दो अंग्रेज़ी फिल्मों में भी काम किया.

सितंबर 2007 में अपने जन्मदिन के मौके पर देव आनंद ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'रोमान्सिंग विद लाइफ़' का विमोचन किया. फरवरी 2011 में देव साहब की ब्लेक अंड वाइट फिल्म 'हम दोनों' को रंगीन करके एक बार फिर रिलीज़ किया गया.

दिसंबर 2011 को अचानक लंदन से एक बुरी खबर आई, खबर थी कि काफी समय से बीमार चल रहे देव साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे. दिल का दौरा पड़ने के बाद देव आनंद का लंदन में निधन हो गया. 1946 से लगातार 2011 तक बालीवुड में सक्रिय रहने के बाद बालीवुड के इस अभिनेता ने जब दुनिया को आखिरी सलाम किया तो पूरे बॉलीवुड ने शोक जताया.

ताउम्र जिंदगी का जश्न मनाने वाले सदाबहार अभिनेता देव आनंद सही मायने में एक अभिनेता थे जिन्होंने अंतिम सांस तक अपने काम से मुंह नहीं फेरा. देव साहब के अभिनय और जिंदादिली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब राज कपूर और दिलीप कुमार जैसे कलाकारों ने फिल्मों में नायक की भूमिकाएं करना छोड़ दिया था उस समय भी देव आनंद के दिल में रूमानियत का तूफान हिलोरे ले रहा था. देव साहब की तस्वीर आज भी लोगों के जेहन में एक ऐसे शख्स की है जिसका पैमाना न केवल जिंदगी की रूमानियत से लबरेज था बल्कि जिसकी मौजूदगी आसपास के माहौल को भी नई ताजगी से भर देती थी.

Previous Articles

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement