सखी सइयां तो खूब ही कमात है... महंगाई डायन खाए जात है... गीत के बोल महंगाई से जूझ रहे हर शख्स के दिल को वाकई कचोटते हैं... वो सोचने लगता है की उसी की व्यथा-कथा का गान हो रहा है...
रुपहले परदे पर महंगाई को एक बार डायन बता कर गीत क्या गा दिया गया... महंगाई तो साक्षात डायन ही बन गई... बैरन है, निगोड़ी है, दुखदायी है... सब कुछ है... लेकिन डायन क्यों? अब हिंदी के व्याकरण ने उसे स्त्री की श्रेणी में जो डाला है... तो अब स्वतः ही स्त्री से जुड़े भेदभाव और तिरस्कार भी उसे झेलने पड़ेंगे ही. ये तो अब उसकी नियति है...
किसी महिला को डायन करार दिया जाना सामाजिक और कानूनी अपराध है... फिर भी डायन कहलाया जाना महंगाई की नियति क्यों?
मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में आये दिन खबरें छपतीं हैं की फलां जगह, फलां महिला को डायन बता कर उसे अमानवीय प्रताडनाएं दी गयीं. निर्वस्त्र किया गया, बेघर किया गया, बाल काट दिए गए, मल और मूत्र उनके मुंह में डाला गया और शरीर को दागा गया... क्यों? क्योंकि उसके आस पास कुछ ऐसा घट गया... जिसके लिए जब कोई ज़िम्मेदार नहीं मिला... तो दोष उसी पर मढ़ दिया गया...
बगल के स्कूल में बच्चे बीमार हो गए, खड़ी फसल पर कीड़ा लग गया , गाँव में किसी की असमय मौत हो गयी या पडोसी के घर तीसरी बेटी हो गई ... वो दोषी करार दे दी गयीं... और शुरू हो गया उसकी प्रताड़ना का सिलसिला... घर और गाँव निकाले का सिलसिला..
...क्या कुछ ऐसा ही हाल महंगाई का नहीं है... वो बढ़ रही है तो दोष भला उसका अपना थोड़े ही है... पर डायन का ख़िताब तो उसी को मिल गया है...
राष्ट्रीय महिला आयोग के संकलित आंकड़ों के मुताबिक देश के लगभग 50 जिलों में ये प्रथा आज भी बड़े पैमाने पर पायी जाती है. डायन करार दी जाने वाली अधिकांश महिलाएं आदिवासी या दलित तबके से ताल्लुक रखतीं हैं. और ज़्यादातर विधवा या बेसहारा होती है...
सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुतबिक इनके मामलात पर अगर नज़र डालें तो पायेंगे कि बहुत से मामले ऐसे होते हैं जहां सदियों पुरानी प्रथा की आड़ में महिलाओं से उनकी संपत्ति छीन ली जाती है.
ठीक वैसे ही जैसे महंगाई को डायन करार दे कर उससे आर्थिक समस्या होने का अधिकार छीन लिया जा रहा है... क्योंकि समस्या होगी तो हल निकलना पड़ेगा... डायन कह कर तो इतिश्री कर दी जायेगी...
देश के तमाम राज्यों पर के कानून पर नज़र डालें तो झारखण्ड ही ऐसा एक राज्य है जहां साल 2001 से डायन प्रथा की रोकथाम के लिए कानून है. राजस्थान के महिला बाल विकास विभाग ने 2011 में ऐसा कानून प्रस्तावित किया है जिसके तहत महिला को डायन करार देने पर सात साल तक की सजा हो सकती है.
राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्त्ता निशा सिद्धू ने डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं के मामले तुरंत निपटाने के लिए एक विशेष सेल स्थापित करने और उनकी संपत्ति कि सुरक्षा, पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए ठोस कानून बनाने की मांग को लेकर राजस्थान उच्च न्यायलय का दरवाज़ा खटखटाया था, मई 2011 में राज्य सरकार, महिला आयोग और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी किये गए. .
कानून बनाने की दिशा में काम जारी है... किन्तु कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन की रोकथाम जैसे व्यापक केन्द्रीय कानून बनाने की सख्त ज़रुरत है.
ठीक उसी तरह जैसे आज देश में सख्त आर्थिक सुधारों की ज़रुरत है...
महिला को डायन बताना और प्रताड़ित करने की प्रथा सिर्फ भारत में ही नहीं है. सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में महिलाओं को डायन बता कर जिंदा जलाया जाता था. अधिकांश गरीब तबके की महिलाएं थीं. यूरोप में आज इतिहासकार उन डायनों की सच्चाई तलाश रहे हैं... उनकी-उनके परिवारों की खोयी प्रतिष्ठा लौटने के प्रयास में जुटे हैं.... लेकिन क्या लांछन कभी धुल पायेंगे ?
शुक्र है महंगाई अंग्रेजी भाषा में स्त्रीलिंग शब्द नहीं है... वरना यूरोप के हालिया रिसेशन में उसपर न जाने कितनी भाषाई तोहमतें मढ़ दी जाती.
खैर दुनिया-जहान की चर्चा के बाद... मुद्दा वहीँ का वहीँ... महंगाई को डायन का खिताब क्यों? क्यों दूसरों के नाकारापन की सजा वो भुगत रही है? भला महंगाई किस कानून की दुहाई देकर, कहाँ गुहार लगाये कि उसे डायन न बुलाया जाए... स्त्री हैं... लेकिन वो पुरुषों के हाथ की कठपुतली -- एक बार फिर हिंदी व्याकरण की दृष्टि से शब्दों का लिंग देखें तो - राष्ट्र: पुरुष उसके कर्ता-धर्ता पुरुष, नीति-निर्धारक: पुरुष..., कानून: फिर पुरुष..., व्यापार: अरे भाषा की दृष्टि से ये भी पुरुष...
बेचारी महंगाई इनके सब के मिले जुले कुप्रबंधन (फिर एक पुल्लिंग शब्द) का नतीजा है... इनकी अकर्मण्यता का नतीजा है... अब कोई बताये कि भला उसे डायन कहना कहां तक जायज़ है....
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