28 जून को पीए संगमा पहले ढोल नगाड़ों के साथ खूब झूमे...खूब थिरके ...फिर राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरने पहुंचे...नामांकन से पहले संगमा ने कहा था कि अगर एक अश्वेत बराक ओबामा अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता है तो एक आदिवासी भारत का राष्ट्रपति क्यों नहीं बन सकता है...अपने नामांकन और कैंपेन के दौरान झूमते नाचते संगमा बराक ओबामा की तो नहीं लेकिन साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा की याद ज़रुर दिला रहे हैं...
ऐसा नहीं है कि इस चुनाव में संगमा सिर्फ ढोल बजा रहे हैं... ढोल बजाते बजाते वो कुछ ऐसे बातें बोल रहे हैं जिस पर सवाल खड़े होने लगे हैं...संगमा ये कह रहे हैं कि कांग्रेस राष्ट्रपति भवन का इस्तेमाल अपने नाकाम वित्तमंत्री को डंप करने के लिए कर रही है
"Congress is using Raisina hill as a Dumping Ground for a failed Finance Minister"...इस बयान के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया और संगमा से राष्ट्रपति पद की मान-मर्यादा का ध्यान रखने की नसीहत दे डाली...."Note to Mr Sangma you are contesting elections to the highest office in the land, would it hurt you to maintain a measure of decorum?"
आखिर पीए संगमा को ऐसी नसीहत की ज़रुरत क्यों पड़ी ? कोई संगमा जी से ये तो पूछे कि आप जिस डंपिंग ग्राउंड की बात कर रहे हैं ...आप खुद वहां डंप होने को इतना बेताब क्यों हैं ? जिस राष्ट्रपति भवन के सपने देखते देखते आपने अपनी पार्टी तक छोड़ दी कम से कम उसके लिए डंपिंग ग्राउंड जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना सही है क्या ?
खैर पहले तो संगमा जी ने कहा लोग अंतरात्मा की आवाज़ पर उन्हें वोट देंगे,,,फिर कहा उन्हें विश्वास है कि कुछ चमत्कार होगा और वो जीत जाएंगे...लेकिन जब अंतरात्मा और चमत्कार जैसे शब्दों से बात बनती नहीं दिखी तो उन्होंने प्रणब मुखर्जी के नामांकन में एक पेंच ढूंढ लिया...और शिकायत कर दी कि प्रणब मुखर्जी लाभ के पद पर हैं क्योंकि वो Indian Statstical institute के चेयरमैन हैं जो कि एक लाभ का पद है ....और इस आधार पर प्रणब का नामांकन खारिज होना चाहिए...
Indian Statstical institute ने चेयरमैन पद से प्रणब के इस्तीफे की कॉपी पेश की और संगमा का ये दांव बेकार गया...लेकिन संगमा हैं कि मानते नहीं...संगमा ने नया पेंच निकाला कि प्रणब के असल हस्ताक्षर और इस्तीफे में प्रणब के हस्ताक्षर में कुछ गड़बड़ है...बीजेपी ने भी संगमा के सुर में सुर मिलाए...पर रिटर्निंग ऑफिसर ने संगमा का ये आरोप भी खारिज कर दिया...संगमा फिर भी नहीं माने...टीम संगमा पहुंच गई चुनाव आयोग...जब चुनाव आयोग ने भी कह दिया कि संगमा चाहें तो कोर्ट जा सकते हैं...तो संगमा फिर से अंतरात्मा के नाम पर वोट देने की अपील करने लगे...अगर संगमा जी अपने अंतरात्मा से पूछें तो शायद यही जवाब मिलेगा कि आंकड़े प्रणब मुखर्जी के पक्ष में है और संगमा का जीतना बहुत मुश्किल है...
अंतरात्मा के नाम पर जीत के लिए जरुरी 5,49,442 वोट का जुगाड़ करना आसान नहीं है...अगर जेडीयू और शिवसेना के बगैर एनडीए के वोट्स के साथ बीजेडी, टीडीपी और AIADMK जैसी पार्टियों के वोट जोड़ लें तो संगमा को करीब 3 लाख 20 हज़ार वोट मिलते दिखाई पड़ रहे हैं...
ममता बनर्जी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.. अगर ममता भी संगमा का समर्थन करती हैं तो ये संगमा को 3 लाख 65 हज़ार वोट तक मिलने के आसार हैं... संगमा के चुनाव जीतने के लिए करीब पौने दो लाख वोटों की कमी है....संगमा जी को ये बात समझनी चाहिए कि जब इतने वोट कम पड़ रहे हों तो आप दांव पेंच, बयानबाज़ी और छींटाकशी के बल पर आप ये चुनाव नहीं जीत सकते हैं...क्योंकि ये आम चुनाव नहीं है और न ही इस चुनाव में वोट देने वाले मतदाता आम हैं जो आपकी बातें, आपका डायलोग सुनकर अपना इरादा बदल देंगे...ये सभी मतदाता खास है...क्यों भूल जाते हैं कि ये मतदाता अपनी अपनी पार्टी के व्हिप से बंधे हैं?
एक सवाल और है....क्या राष्ट्रपति जैसे सबसे ऊंचे पद के चुनाव में असेबंली इलेक्शन या जैसा कांग्रेस ने कहा कि यूनिवर्सटी लेवल के इलेक्शन जैसे आरोप -प्रत्यारोप और भाषा का इस्तेमाल करना सही है ? अगर हां तो ..फिर प्रणब मुखर्जी इतने संजीदे और खामोश क्यों हैं ? प्रणब मुखर्जी क्यों आपके बयानों के जवाब देना भी जरुरी नहीं समझ रहे हैं ? क्यों वो पूरी गरिमा के साथ अपने चुनाव कैंपेन में लगे हुए हैं ?...जबकि ये बात वो भी जानते हैं कि रायसीना की इस रेस में उनका पलड़ा भारी है...
संगमा जी को यही बात अपने समर्थक नेताओं को भी बतानी चाहिए जो ये आरोप लगा रहे हैं कि राज्यों को पैकेज देकर प्रणब के लिए वोट्स खरीदे जा रहे हैं...राजनीति में कुछ बातें ऐसी जरुर होती हैं जिन्हें देखा, समझा और महसूस किया जा सकता है लेकिन उसे साबित नहीं किया जा सकता है...चाहे वो यूपी में अखिलेश सरकार के लिए 45 हजार करोड़ के परियाजनाओँ पर सेंटर की हामी हो या फिर हाल ही में मायावती को आय से ज्यादा संपत्ति में मिली बड़ी राहत हो...अब जिन बातों को साबित नहीं किया जा सकता उसके लिए राष्ट्रपति चुनाव की मर्यादा भला कम क्यों कर रहे हैं ?
संगमा जी को इस बार तो केवल इस बात पर संतोष कर लेना चाहिए कि नेशनल पॉलीटिक्स में गायब हो चुके संगमा इसी बहाने फिर से मुख्यधारा (mainstream) में शामिल हो गए हैं...थोड़ा इंतज़ार कर लीजिए ...क्या पता अगली बार आपका समर्थन करने वाली पार्टियों के पास ज्यादा वोट्स हों और आप आसानी से चुने जाएं ...
और आखिर में प्रणब मुखर्जी की संजीदगी और संगमा के बयानों से भरपूर कैंपेन को देखने के बाद ये दो लाइन याद आती है जो बहुत हद तक सही बैठती है
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समंदर का सुकून
जिसमें जितना ज़र्फ है, उतना वो खामोश है...
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