शून्य से नीचे के तापमान में बर्फ से ढके पहाड़ों में चीन और पकिस्तान के मुकाबले के लिए ख़ास योद्धा तैयार हो रहे हैं। लेह लद्दाख की पहाड़ियों से लेकर अरुणाचल तक चीन की बढ़ती हिमाकत का जवाब देने के लिए भारत ने माउंटेन स्ट्राइक कोर बनानी शुरू कर दी है। ये कोई आम सैनिक नहीं हैं बल्कि शून्य से नीचे के तापमान पर ऊँचे बर्फीले पहाड़ों पर दुश्मन का मुकाबला करने वाले ये ख़ास जवान हैं। सैकड़ों जवान अपने हथियार और पीठ पर 25 किलो का वजन लेकर बर्फ में स्कींइग करते आगे बढ़ रहे हैं। हर कदम पर मुश्किल बढ़ती जाती है। ये जवान ऊँची पहाड़ी से स्कींइग करते हुए नीचे छलांग लगाकर दुश्मन पर धावा बोलते हैं।
भारत की आधी से ज्यादा सेना सरहद पर पहाड़ों में तैनात है लेकिन सेना के बड़े अधिकारी मानते हैं कि आने वाले दिनों में निर्णायक लड़ाई ऊँचे पहाड़ों पर ही लड़ी जायेगी। भले ही सरकार सरहद पर चीनी सेना की घुसपैठ को तूल नहीं देना चाहती हो लेकिन सेना के ये खास योद्धा चीन और पकिस्तान को कोई मौका नहीं देना चाहते। ऐसे ही जवानों को तैयार करने वाले सेना के इस खास स्कूल का नाम है हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल। सेना का ये खास स्कूल कश्मीर में भारत-पाक सरहद पर गुलमर्ग में मौजूद है। सूरज की पहली किरण के साथ ही यहाँ पर ट्रेनिंग का सिलसिला शुरू हो जाता है। शून्य से 13 डिग्री नीचे के तापमान के बीच ये योद्धा निकल पड़े हैं अपने मिशन पर। ये मिशन सुबह से शुरू होकर देर रात तक चलता है। इंडिया टीवी के संवाददाता मनजीत नेगी ऊँचे बर्फीले पहाड़ों में सेना के इस ख़ास ऑपरेशन और ट्रेनिंग और का हिस्सा बने। कहा जाता है कि ट्रेनिंग में जितना ज्यादा पसीना बहेगा जंग में उतना ही खून बचेगा।
अब हम आपको बर्फ में स्कींइग के लिए काम आने वाले उपकरण से रुबरु कराते हैं। हर उपकरण ख़ास है और ऊँचे पहाड़ में दुश्मन से मुकाबले से पहले इन पर महारत हासिल करना जरुरी है। उपकरणों में स्कींइग, स्टिक, ख़ास जूते, दस्ताने, चश्मा और हेलमेट शामिल हैं। हमनें भी इस ख़ास मिशन पर आगे बढ़ने से पहले अपने आपको सारे साजोसामान से लैस कर लिया। डिप्टी कमाडांट ब्रिगेडियर अशोक अब्बे ने बताया कि हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल सेना का सबसे अहम् स्कूल है जहां पर ऊँचे बर्फीले पहाड़ों पर मुकाबले के लिए जवानों को तीन महीने कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग कई चरणों में होती है जिसमें बेसिक ट्रेनिंग से लेकर एडवांस ट्रेनिंग शामिल है। ख़ास बात ये है कि ट्रेनिंग के लिए सेना की हर यूनिट से बहुत से जवान आते हैं लेकिन उसमें से आधे से ज्यादा जवान बेसिक ट्रेनिंग में ही छंट जाते हैं। कह सकते हैं कि हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल में ट्रेनिंग करना बच्चों का खेल नहीं है।
अब हम सेना की इस ख़ास टुकड़ी के साथ सरहद पर एक अग्रिम चौकी की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इस अग्रिम चौकी पर छोटे-छोटे टैंटों में जवान आराम कर रहे हैं अचानक हरकत होती है। टीम कमांडर को रेडियो सेट पर सूचना मिलती है कि सरहद पर 2 आंतकियों ने घुसपैठ की कोशिश की है। सभी जवान हरकत में आ जाते हैं और टीम कमांडर जवानों को ऑपरेशन में चलने की हिदायत देता है।अब जवान दो-दो के जोड़े में आगे बढ़ रहे हैं। कई फीट बर्फ में पहाड़ी पर आगे बढ़ना काफी मुश्किल है। जवान धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। अचानक पेड़ की आड़ से आतंकवादियों ने गोलाबारी शुरू कर दी। जवाब में जवानों ने भी मोर्चा सम्भाल लिया और जवाबी कार्यवाही शुरू कर दी। जवानों ने आतंकवादियों को घेरने में कामयाबी हासिल कर ली। ऑपरेशन खत्म होने पर जवानों में बहुत जोश है। आज उन्होंने बर्फीली पहाड़ी पर दिन के वक्त दुश्मन के खिलाफ कार्र्वाई का एक सबक सिखा लेकिन इतना ही काफी नहीं है असल परीक्षा बाकी है। बर्फीले पहाड़ में अपने घायल साथी की मदद कैसे करनी है। इसके लिए भी जवानों के पास ख़ास उपकरण हैं जिनकी मदद से किसी आपदा के समय से घायलों की मदद आसानी से की जा सकती है।
आने वाले दिनों में स्ट्राइक कोर का मुख्यालय पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में होगा और चीनी हमले की स्थिति में यह पूरे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में दुश्मन के इलाके में घुसकर पर्वतीय युद्ध छेड़ने में सक्षम होगी। नई स्ट्राइक कोर की यूनिटें लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक के इलाके में फैली होंगी। गुलमर्ग में सेना के हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल के कमाडांट मेजर जनरल विजय पाल ने बताया कि आने वाले दिनों में पहाड़ों में दुश्मन के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल की ट्रेनिंग के लिए जवान को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होना चाहिए। खुद 57 साल के मेजर जनरल विजय पाल इस उम्र में स्कींइग करते हुए अपने जवानों का हौसला बढ़ा रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि हाई अल्टीटयूड वारफेयर स्कूल में ट्रेनिंग कर चुके जवानों ने सियाचिन ऑपरेशन से लेकर कारगिल की लड़ाई तक हर जंग में अपना लोहा मनवाया है।
शाम हो चुकी है अब हम सेना की टीम के साथ रात के ऑपरेशन पर जाने की तैयारी में हैं। बर्फीली पहाड़ी पर शून्य से नीचे के तापमान के बीच जवान की असल परीक्षा रात के वक्त होती है। अँधेरा फौजी का सबसे बड़ा दोस्त होता है। रात के 9 बज चुके हैं सेना की इस टुकड़ी के साथ हम सरहद पर एक अग्रिम चौकी की तरफ जा रहे हैं। कर्नल हरी थापा के मुताबिक़ जवानों के सामने मौसम और दुश्मन की दोहरी चुनौती है। रात के करीब 10 बजे हम एक अस्थायी चौकी पर पहुँच चुके हैं। जवानों ने रात के ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर दी है। सबसे पहले बर्फ में गढ़े बनाकर स्टोव जलाया जा रहा है। टैंट के अंदर जवानों ने अपने हथियार और दूसरा जरुरी सामान रख दिया। ऊँचे बर्फीले पहाड़ों में जवान के लिए बचाव का सबसे कारगर हथियार इग्लू होता है। इग्लू यानि की बर्फ से बना घर। इसके अंदर जवान एक मोमबत्ती के सहारे कई दिन गुजार सकता है। एक इग्लू में 3-4 जवान रहते हैं।
खून जमा देने वाली ठण्ड के बीच जवान कैसे अपना वक्त गुजारते हैं। हम ठण्ड से कांप रहे थे लेकिन जवानों के हौसलों से माहौल गर्म हो चुका है। इसके बाद शुरू हुआ नाच-गाने का सिलसिला। किसी जवान ने रोमांटिक फ़िल्मी गाना गाया तो किसी ने देशभक्ति से लबरेज गाने से जोश भर दिया। लेकिन जवान सबसे ज्यादा सलमान खान के गाने और डायलॉग पर झूमते नजर आये। जवानों ने दूर सरहद से अपने घर वालों को सन्देश दिए। इस सब के बीच जब तापमान शून्य से इतने नीचे जा रहा था कि हमारे लिए वहाँ रुकना मुश्किल होता जा रहा था ऐसे वक्त में जवानों ने भारत माता की जय के नारों से माहौल को एक गर्म कर दिया।
- मनजीत नेगी, विशेष संवाददाता इंडिया टीवी, गुलमर्ग
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