Saturday, December 28, 2024
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मालिश की महिमा

Hemant Sharma

भोगा हुआ यथार्थ। यह यथार्थ की सबसे भरोसेमंद स्थिति है। सुने हुए और देखे हुए यथार्थ से ज्यादा। हर यथार्थ को जानने के लिए उसे भोगना जरूरी नहीं है। मुसीबत में डालने वाला होता है। यह भी सही है अगर भोगेंगे नहीं तो आपकी जानकारी ‘फर्स्ट हैण्ड’ नहीं होगी।

मसलन पिछले कुछ सालों में दुनिया के जिस देश में भी गया वहां ‘मसाज’ यानी मालिश के बड़े-बड़े बोर्ड देखे। भीतर क्या है यह जानने की जिज्ञासा हमेशा बनी रही। अपने देश में भी मसाज एकदम से चलन में आ गया। मेरे मुहल्ले में कई मसाज सेंटर खुल गए हैं। कोई आयुर्वेद के जरिए यह काम कर रहा है तो कोई केरल के परम्परागत मसाज का दावा। इस मसाज के यथार्थ को जानने के लिए एक रोज मैं सबसे सुरक्षित केरल वाले मसाज केंद्र में चला गया। जो हुआ उसी से इस नतीजे पर पहुंचा, कि हर यथार्थ को जानने के लिए उसे भोगना ठीक नहीं है। मेरी याद में घोड़ों को दौड़ाने से पहले, पहलवानों की मल्लयुद्ध के दौरान, स्त्रियों की प्रसव के बाद और बच्चों के जन्म लेने के बाद मालिश होती थी।

बाद में इस मालिश का आनन्द तत्व तो प्रभुवर्ग से जुड़ा और बीमारी ठीक करने वाला तत्व फिजियोथैरपी से। वैसे बोलचाल की भाषा में तेल लगाना चापलूसी का दूसरा नाम माना जाता है। सिर पर चंपी करने वालों को चम्पू कहा गया। राजनीति में चम्पूओं का बड़ा बोलबाला है। मालिश का जन्मदाता देश चीन है। चीन में जो लोग मालिश करते हैं। उनका आदर सम्मान डॉक्टरों से कम नहीं है। जापान ने चीन से यह विद्या सीखी। मुक्का मारने से लेकर चिकोटी काटने तक को इस विद्या से जोड़ा। कालांतर में यूनान, रोम, तुर्की, मिस्र और फारस जैसे देशों में यह कला विकसित हुई। तुर्की के लोग स्नान से पहले अपने शरीर में मालिश करते थे। अफ्रीका में विवाह से एक महीने पहले से ही वर-वधू की रोज मालिश की प्रथा है। उनका मानना है इससे यौवन फूटता है। जो शायद सच भी है। अपने यहां विवाह से पहले जो हल्दी की रस्म है, वह एक तरह की मालिश ही है। मालिश की महिमा निराली है और इतिहास अद्भुत। ईसा से पांच सौ साल पहले जिम्नास्टिक का आविष्कार करने वाले `हीरोडिक्स´ अपने रोगियों को मालिश का सुझाव देते थे।

यूनानी साहित्य, मूर्तियों और चित्रों को देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वह समाज किस तरह की मालिश का शौकीन रहा होगा। ‘मसाज’ अरबी शब्द ‘मास’ से बना है। जिसका अर्थ मांसपेशियों को हाथ से दबाने और जोड़ों की मालिश करने की कला है। इंग्लैण्ड में मालिश ‘मेडिकल रबिंग’ के नाम से जानी जाती है। ‘स्वीडिश मसाज’, ‘अरोमा थेरेपी मसाज’, ‘हॉट स्टोन मसाज’, ‘थाई मसाज’, ‘बेसिक मसाज’ और ‘कैराली मसाज’ आजकल चलन में है। थाई मसाज का तो दुनिया में डंका है। इन दिनों परम्परागत थाई मसाज को चलन से बाहर कर वहां मसाज के नाम पर दूसरे घंधे चल निकले हैं। इससे ‘थाई मसाज’ कलंकित हुआ है। केरल अपनी नैसर्गिक सुन्दरता और हरियाली के अलावा ‘कैराली मसाज’ के लिए जाना जाता है। यहां इस कला को आयुर्वेद की दौ हजार साल पुरानी चिकित्सा पद्धति से जोड़ा गया है।

केरलीय आयुर्वेद का प्रामाणिक ग्रन्थ वाग्भट का 'अष्टांगसंग्रहम्' है। वाग्भट ने कई मुद्दों पर चरक का अनुसरण किया है। ‘कैराली’ आयुर्वेद और परम्परागत मसाज का फ्यूजन है। कौतुकवश मैं भी इस पद्धति के ‘फुल बॉडी मसाज’ और ‘शिरोधारा’ का यथार्थ जानने पहुंचा। इस पद्धति में छत पर लटकती रस्सी को पकड़ कर एक लय में आपके शरीर को पैरों से रौंदा जाता है। इनकी निपुणता इतनी कि बदन पर ऊपर नीचे जाते दोनों पैरों में एक सेकंड का भी फर्क नहीं पड़ता। शरीर के पोर-पोर से मानो तेल भीतर रिसता है। फिर खासतौर पर तैयार एक औषधीय पोटली को तेल में गरम करते हैं। उसी पोटली से पूरे शरीर में मालिश होती है। शिरोधारा में तीन लीटर तेल सिर पर बूंद-बूंद टपकाते हैं। एक निरंतरता में। मानते हैं। ललाट से कपाट तक बहते इस तेल से दिमाग की जड़ता पिघलती है। एक लीटर तेल से शरीर की पहले ही मालिश हो चुकी थी। सोच रहा था, चार लीटर तेल तो एक औसत परिवार के महीने भर का खर्च होगा। यहां ये इस नश्वर शरीर पर जाया हो रहा है। इसके बाद मुझे एक काठ के बक्से में बिठा कर बंद कर दिया गया। मेरी सिर्फ गर्दन बाहर निकली थी। बक्शे के भीतर एक पाइप थी जिसका दूसरा सिरा पास रखे प्रेशर कुकर के सीटी वाले सिरे से बंधा था। गैसे जला, कुकर से पैदा होने वाली स्टीम पाइप के जरिए काठ के बक्शे में आ रही थी। ये मेरा ‘स्टीम बाथ’ था। अब मुद्दे पर आता हूं। मसाज से पहले मुझे एक कागज या शायद फाइबर की लंगोट नुमा चीज पहनने को दी गई। जिसे पहनना किसी के लिए भी मुश्किल होता है।

उसे मैंने जैसे-तैसे बांधा। मालिश के हर मोड़ पर उसके फट जाने का डर प्रतिपल बना रहा। भाई लोग मेरी मालिश कर रहे थे। और मैं लंगोट के फट जाने के डर से भयाक्रांत था। लगा, मर्यादा अब गई। तब गई। पूरा वक्त लंगोट के आकार की बची इज्जत बचाने के तनाव और डर में बीत गया। मसाज के आनंद की अनुभूति को कौन कहे। मसाज खत्म होते ही लगा जान बची तो लाखो पाए। फिर संकल्प लिया कि अब इस रास्ते नहीं आना। भोगा हुआ यथार्थ गया तेल लेने।

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