सच मानिए, अब मुहब्बत के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची है। प्रेम से वंचित होते इस समाज में इश्क के रास्ते की अड़चन सरकार होगी। अब तक प्रेम के शत्रु खाप पंचायतें, हिन्दुत्व के ठेकेदार, दरोगा और जाति-मजहब के नियमों से संचालित स्वयंप्रभु संगठन थे। दुनियाभर के साहित्य और इतिहास में दर्ज प्रेम कथाएं बताती हैं कि प्रेम का रास्ता कांटों का रास्ता है। ‘एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।’ पर नए दुष्कर्म विरोधी कानून के प्रावधानों के बाद इस दरिया का रास्ता सीधे जेल ले जाएगा। पीछा किया तो कैद, भर आंख देखा तो हवालात। कोई कांस्टेबल आपकी आंखों पर पहरा दे रहा होगा। आंखें जुबां नहीं है। मगर बेजुबां भी नहीं। उसकी भी भाषा है। कौन पढ़ेगा इसे? निराला कह गए- ‘नयनों से नयनों का गोपन, प्रिय संभाषण।’ अब कानून कह रहा कि चौदह सैकेंड से ज्यादा किसी लड़की को देखा तो जेल जाएंगे। चचा गालिब कहते हैं- ‘उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक।’ अब उनको देखे से खुलता है हवालात का रास्ता।
फिर देखेंगे कैसे श्रीमान्? देखेंगे नहीं तो हुस्न के चर्चे कैसे होंगे? पारखी से ही हीरे की पहचान होती है। वरना वह तो पत्थर ही रहेगा। क्या आधी दुनिया इसके लिए राजी होगी? मेरे एक मित्र हैं तिवारी जी सौन्दर्य के चरम उपासक, देखते कहीं और हैं ध्यान में कुछ और रहता है। अब दरोगा उन्हें इस काम का तीसरा आयाम भी दिखा देगा। तो क्या दरोगा के डंडे से प्रेम मर जाएगा? नहीं, प्रेम उर्जा है। वैज्ञानिक कहते हैं उर्जा का क्षय नहीं, रुपान्तरण होता है। अगर चीजों में आर्कषण न हो तो सृष्टि बिखर जाएगी। इस ब्रह्माण्ड के बाहरी परिधि में ढेर सारे उपग्रह हैं जो एक दूसरे के आर्कषण पर टिके हैं। स्त्री-पुरुष के आर्कषण पर ही समाज टिका है। आर्कषण बिना देखे हो नहीं सकता- ‘नयनों से नयना मिले, नाचा मन में मोर। दो नयनों में रतजगा, दो नयनों में भोर।’ घूर कर देखने और पीछा करने पर जेल जाने का कानून अगर पहले बना होता तो मैं वर्षों तक जेल में रहता। अपनी पत्नी से विवाह से पहले कोई सात बरस तक मैं उनके पीछे-पीछे भटकता रहा। चरैवेती, चरैवेती! शहर से विश्वविद्यालय तक वे रिक्शे पर मैं साइकिल से। आज की स्थिती होती तो जेल की हवा खा रहा होता। उनके भाई तो कानून के बड़े जानकार थे। भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल।
पर मैं इस कानून के खिलाफ नहीं हूं। जिन परीस्थितियों में यह कानून बना उसमें बलात्कार के मामले में तो इससे भी सख्त कानून बनना चाहिए। लेकिन जो बाकि की धाराऐं हैं। उससे पुलिस को बेहिसाब अधिकार मिलेंगे। और उनके सिर्फ बेजा इस्तेमाल ही होंगे। यह कानून एकतरफा है। इसके कुछ प्रावधान पुरूष विरोधी हैं। यह कहने की हिम्मत सिर्फ जया बच्चन और मधु किश्वर ने ही दिखायी। बदली परिस्थितियों में अब हर किसी को अपना विवाह प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस की तरह साथ रखना होगा। न जाने किस चौराहे पर कांस्टेबल खड़ा मिले और कहे आप साथ जा रही स्त्री का पीछा कर रहे हैं। बढ़ती उम्र से नजरें तो कमजोर होती ही हैं। मुझे इन दिनों दूर की कोई वस्तु देखने के लिए आंख को फोकस करने में 15 से 20 सैकेंड लगते हैं। तब उसके आकार प्रकार का अहसास होता है। अब जब तक मैं आंखों को फोकस करूंगा चौदह सैकेंड हो चुके होंगे और मुझे घूरने के कानून में अन्दर जाना होगा।
कानून की ऐसी वर्जना पहले होती तो दुनिया की तमाम प्रेम कहानियां जन्म ही न लेती। राधा-कृष्ण विवाहेत्तर प्रेम प्रसंग के आरोप में जेल में होते। कृष्ण जब सरोवर में नहाती गोपिकाओं के कपड़े लिए भाग रहे होते तो पुलिस एंटी रेप लॉ का डंडा लिए उन्हें दौड़ा रही होती। दुष्यन्त और शकुन्तला पर तो विवाह पूर्व सेक्स का मामला बनता। वे जेल में होते। तो उनके बेटे भरत कैसे होते? इस देश का नाम भारत कैसे पड़ता? रूपमति-बाजबहादुर, सलीम-अनारकली, ढोला-मारु इनके प्यार के विरोधी परिजन इन्हें रेप कानून के तहत अन्दर करा देते। मजनू पागल हो कविता नहीं लिख रहा होता। कब्र तक लैला का पीछा करने के आरोप में अरब की जेल में होता। हीर जब रांझा की नहीं हुई तो वह जोगी हो गया। जोगी हो वह हीर को ले उड़ा। दूसरे भी बीवी भगाने के आरोप में रांझा को भी दस से बीस साल जेल काटनी पड़ती। सोहनी-महिवाल, शीरी-फरहाद, रोमियो-जूलियट कथाओं के पात्र आजन्म घूरने, पीछा करने, विवाह पूर्व सेक्स के आरोप में जेल की चक्की पीस रहे होते।
अपने कालिदास और तुलसीदास दोनों की पत्नियों ने उन्हें घर से निकाला। कानून नहीं था वरना बलात्कार का कानून भी लगा देती। फिर हिन्दी और संस्कृत साहित्य का क्या होता? रत्नावली रामभक्त खोज रही थी। इसलिए उसने कामभक्त तुलसी को दुत्कारा। विद्योत्तमा ने अपने विद्वता अहंकार से कालिदास के काम को दबा दिया। मेरे मित्र टंडन जी तो विवाह के लिए सालों बोटेनिकल गार्डन में टहलते रहे। पीछे-पीछे, गोल-गोल दत्तचित्त। तब जाकर उन्हें बाबा विश्वनाथ की मदद से सफलता मिली। जिसके पीछे-पीछे वे हर सुबह टहलने जाते थे। उसी से विवाह किया। डॉ. लोहिया ऐसे मामलों में रास्ता निकालते हैं। वादाखिलाफी और बलात्कार के अलावा वे स्त्री से हर सम्बन्ध जायज मानते हैं।
प्यार को जकड़ने की ऐसी कोशिश कोई पहली बार नहीं हुई है। समान गोत्र में प्रेम का विरोध खाप पंचायते करती हैं। जाति-मजहब के खिलाफ प्रेम किया तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश की पंचायतें तालिबानी फरमान सुनाती हैं। प्रेमियों को मौत के घाट उतारा जाता है। मुम्बई पुलिस के ताजा फरमान से ‘डेट करने वाले’ और ‘एकांत’ में बैठने वाले हवालात के अंदर हो रहे हैं। पुलिस ऐसे जोड़ों से बारह सौ रुपये हर्जाना भी वसूलती है। जनसंख्या बढ़ रही है। जगह की कमी है। सबकी जेब होटल का खर्च नहीं उठा सकती। ऐसे जोड़े पार्कों का सहारा लेते हैं तो ‘ऑपरेशन मजनू’ कह पुलिस उन्हें अपमानित करती है। मजनू तो प्रेम पर कुर्बान हुआ, हमारी पुलिस उसे रोज मारती है। कहीं शिव सैनिक और हिन्दुत्व के अलंबरदार प्रेमी जोड़ों की जान पर आफत बनते हैं।
नए कानून के मुताबिक अठारह साल या उससे कम उम्र का लड़का अगर अठारह साल से कम किसी लड़की से विवाह कर सेक्स करता है तो उसे दुष्कर्म का दोषी माना जाएगा। लड़की का कुछ नहीं होगा। शाहरूख खां अब यह नहीं गा सकते कि ‘तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरन’। पूरा का पूरा रीतिकालीन साहित्य आंखों की भाषा पर है। रहीम कहते हैं- ‘रहिमन मन महाराज के, दृग सों नहीं दिवान। जाहि देख रीझे नयन, मन तेहि हाथ बिकान।’ इश्क ने गालिब को निकम्मा बना दिया, इश्क उनके लिए आसान नहीं था। अब तो और भी आसान नहीं होगा। पुलिस कांस्टेबल के रहमों करम पर होगा।
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