सुप्रीम कोर्ट ने सी.बी.आई को सरकार का तोता क्या कहा? सरकार में बैठे लोगों के हाथों से तोते उड़ गए। खुद सी.बी.आई प्रमुख ने रोते हुए माना कि हां हम तोता हैं। कोर्ट ने सही कहा है। देखिए सी.बी.आई प्रमुख ने कितनी जल्दी कोर्ट की बात रट ली। कहने लगे हां हम तोता हैं। यही ‘तोता धर्म’ है। बड़ा चतुर पक्षी है। ताकतवर मालिक को फौरन पहचान उसकी जुबान बोलने लगता है।
तोता गजब का रटन्तू। जो रटा दीजिए तुर्की-ब-तुर्की वैसे ही भाखेगा। इस काम में उसे देर भी नहीं लगती। तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने जब आला जांच एजेंसी को फटकार लगाते कहा, “मालिक की आवाज बोल रहे हैं पिंजरे में बंद तोते की तरह।” पर अफसोस इस तोते के कई मालिक हैं। बचपन में मैंने रघुवीर सहाय की कविता पढ़ी थी। अगर कहीं मैं तोता होता/ तोता होता तो क्या होता?/ तोता होता/ होता तो फिर? होता 'फिर' क्या?/ होता क्या? मैं तोता होता। उस वक्त मुझे इस कविता का अर्थ समझ में नहीं आया था। अब पता चला तोता होता तो क्या-क्या कर सकता था?
प्राचीन काल से भारतीय राज व्यवस्था के प्राण तोतों में बसते रहे हैं। तोते के बिना राजकाज असम्भव है। तोता ही आदमी को महान बनाता है। गधे को पहलवान बनाता है। तोता हिटलर के प्रचारमंत्री ‘गोएबल्स’ की तरह झूठ को रटते-रटते उसे सच में तब्दील करता है। पर सोनिया जी का तोता तो बोलता नहीं सिर्फ देखता है। देश में अरबों की लूट हो। सीमा में पड़ोसी अन्दर घुस आए। जनता कुशासन से ऊब सड़कों पर आ जाय। पर तोता बोलता नहीं। तोता अनुशासित है। बोलता तभी है जब मालिक का इशारा हो। दरअसल सी.बी.आई एक ऐसा तोता है जिसकी जान सरकार के पास कैद रहती है। सरकार जब चाहे उसका टेंटूआ दबा सकती है। इसलिए तोता मालिक के इशारे पर नाचता है। वह सरकार की रटी रटाई बात को कोर्ट के सामने जस का तस उलट देता है। इस तोते के पास ताकत भी रहती है। सरकार जिसको कहती है। ये तोता उसका टेंटुआ दबा देता है। दक्षिण में करुणानिधि हों या उत्तर में मायावती। जगन मोहन हों या मुलायम सिंह यादव। अपने इसी तोते के जरिए सरकार राजनीति को भी नियंत्रित करती है।
तोता पुराण कोई नया नहीं है। लालू यादव ने गए साल नीतिश कुमार को कहा था “नीतिश बीजेपी आ.एस.एस. का तोता है।” जवाब में सुशील मोदी बोले “लालू बूढ़ा तोता हो गए हैं। जिसे सिर्फ राम-राम कहना चाहिए।” अन्ना आन्दोलन पर राहुल गांधी की खामोशी पर उठे सवाल के जवाब में रेणुका चौधरी ने कहा “राहुल गांधी कोई तोता नहीं हैं। कि जब आप चाहें तब वे बोलें।”
कबूतर शांति और निष्ठा का प्रतिक है और तोता चम्पूपन का। तोते का वैज्ञानिक नाम 'सिटाक्यूला केमरी' है। कई रंगो में पाया जाने वाला यह पक्षी ज्यादातर गरम देशों में मिलता है। तोता मनुष्यों की बोली की बखूबी नकल करता है। धरती पर 372 किस्म के तोते पाए जाते हैं। तोते छोटे बड़े दो किस्मों के होते हैं। छोटे तोते का जीवन 10 से 15 साल होता है जबकि बड़ा तोता 75 साल तक जिन्दा रहता है। लाल कण्ठ वाला हरा तोता अफ्रीका से लेकर भारत तक पाया जाता है। आस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले बड़े तोते खूबसूरत और रंगीन होते हैं। उसे ‘काकातुआ’ या ‘मैकॉ’ भी कहते हैं। मेरे बचपन में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास एक काकातुआ था जो ओम नम: शिवाय के अलावा शिव स्त्रोत का भी पाठ करता था। हम सब भीड़ लगा कर उसे सुनते थे।
तोता पत्नीव्रती पक्षी है। नर और मादा मिल कर घर बनाते और चलाते हैं। फरवरी से मार्च तक तोते घर बनाते हैं। अप्रैल से मई तक इसके अण्डे देने का वक्त होता है। तोता नकल करने के उस्ताद होता हैं। संदेशवाहक की भूमिका भी निभाता है। तोते को कामदेव का वाहन भी कहा गया है। हमारे शास्त्रों में इन्हें शुकदेव भी कही गया है। शुकदेव महाभारत कालीन मुनि थे। गांधी जी अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग में शुकदेव से बड़े प्रभावित थे। शुकदेव नग्न रहते थे। फिर भी उनकी मौजूदगी में स्त्रियां शर्म या संकोच महसूस नहीं करती थीं। जब कि शुकदेव के वृद्ध पिता व्यास के साथ ऐसा नहीं था। शुकदेव ने ही परीक्षित को ‘श्रीमदभागवत’ सुनाई थी। इसलिए रिपोर्ट या कथा पढ़ कर सुनाना तोते का पुराना कर्तव्य है। अश्वनी कुमार को अगर सी.बी.आई. के तोते ने रिपोर्ट पढ़ कर सुनाई तो यह तो उसका कर्तव्य था। कुछ तोते भाग्य भी बांचते हैं। खासकर नेपाल की पहाड़ियों में पाया जाने वाला भूरा तोता। इसे ज्योतिष का ज्ञान मां के पेट से ही मिलता है। सड़क के किनारे बैठे अपने भाग्य से लाचार पंडित जी दूसरों का भाग्य ऐसे ही तोते से पढ़वाते हैं। अब देखिए सी.बी.आई. का तोता भी मनमोहन सिंह का भाग्य निर्धारण कर रहा है।
रंजीत सिन्हा या उनकी सी.बी.आई. कोई आज पहली दफा तोता नहीं बनी है। कुछ खास नस्ल के तोते पुरातनकाल से राज्य की रक्षा करते आ रहे हैं। अगर कोई जासूस राज्य की सीमा में घुसता तो राजा को उसकी सूचना कई जगह तोते ही देते थे। 13वीं सदी में ऑस्ट्रेलिया में तोते जासूस के तौर पर इस्तेमाल किए जाते थे। रोम के कई शासक अपने सिंहासन के करीब एक सोने का पिंजरा रखते थे जिसमें तीन चार नस्ल के तोते रखे जाते थे। फैसला लेने से पहले राजा टोटकों के जरिए उन तोतों की राय जानता था। 16वीं सदी में एक दलाई लामा ने अपने पालतू तोते को भगवान बुद्ध के उपदेश सुनाए। तोते ने उपदेशों को रट लिया। और कई दफा भक्तों के बीच जाकर बुद्ध के उपदेश सुनाए।
सी.बी.आई. का तोता सिर्फ मनमोहन सरकार के लिए काल नहीं बना है। इसका भी रोचक इतिहास है। मिस्त्र के जंगलों में लाल व काले रंग के तोते पाए जाते थे। उस वक्त वहां यह धारणा थी कि मुसीबत के दिनों में अगर लाल रंग का तोता दिखाई दे, तो विपत्ति का समाधान होने की सम्भावना बनती है। अगर कोई काले रंग का तोता देख ले तो माना जाता था कि उसकी मृत्यु होने वाली है। साइबेरिया में मान्यता है कि अगर सपने में तोता दिखे तो धन की प्राप्ति होती है। पेरू में अगर किसी के घर या बगीचे में तोते की मौत हो तो उसे अनिष्टकारक मानते हैं।
देखा आपने तोते में कितने गुण हैं। ‘तोतावाद’ के बिना राज्य का तंत्र नहीं चल सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अध्ययन कर सी.बी.आई को तोते का तमगा दिया होगा। हो सकता है अब यह चलन में आ जाए। कल आप अखबार में पढ़ें फलां जगह पर ‘सरकारी तोतों का छापा।’ तब क्या होता? होता क्या? रघुवीर सहाय से क्षमा सहित- ‘अगर कहीं मैं तोता होता। बेशर्मी पर कभी न रोता।’
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