Monday, November 18, 2024
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पानी पर इतिहास

Hemant Sharma

घुमक्कड़ी वृत्ति का अपना ही सुख है। निकलिए कुछ और ढूंढ़ने, मिल जाता है कुछ और। प्रकृति की विविधता मन को तरोताजा करती है तो यात्रा के दौरान नए अनुभव बुद्धि को मांजते हैं। हमारे बचपन में छुट्टी का मतलब ननिहाल जाना था। इसके पीछे अर्थशास्त्र था और समाजशास्त्र भी। अब समय बदला है। रिश्ते-नाते में जाना लोग अब समय खोटी करना समझते हैं। वक्त के साथ चलने की मजबूरी में हम भी छुट्टियां मनाने पिछले दिनों परिवार के साथ मालदीव गए। लौटा तो समुद्र का रहस्य, पानी की जिंदगी का सच और प्रकृति के मायावी चरित्र की अनेक अजानी जानकारियां साथ हो लीं।

जिस ‘बंडोसा’ द्वीप पर हम ठहरे, उस पर केवल हमारा होटल था। दिन में हम द्वीप के कई चक्कर लगा लेते थे। सावन की तरह गहरी हरियाली थी वहां। मालदीव का समुद्र उथला, शांत और शीशे की तरह पारदर्शी है। बारह सौ द्वीपों की समूची द्वीपमाला समुद्र में मोती-सी बिखरी पड़ी है। हरे पेड़, सफेद रेत और नीले समुद्र से प्रकृति ने जो कोलाज बनाया है, वही है मालदीव। समुद्र और आकाश मिल कर यहां मनुष्य के लिए एक एकांत रचते हैं। इस कारण समूचे द्वीप पर एक अखंड निस्तब्धता का साम्राज्य होता है। समुद्र का जो नजारा यहां मिलता है, दुनिया में कहीं और नहीं!

हिंद महासागर की उत्ताल तरंगें सफेद रेत से टकरा कर जो निनाद पैदा करती हैं वह सितार-सा बजता है। ‘नदी के द्वीप’ से ज्यादा आनंद था समुद्र के इस द्वीप में। अब तक ‘सी ग्रीन’ सिर्फ पेंटिग में देखा था। पक्षियों का कलरव, लहरों का संगीत और पेड़ों की हरियाली मिल कर ऐसा वातावरण बना रहे थे, मानो भीतर बरसों से दबे उल्लास का स्रोत एकाएक फूट पड़ा हो।

लगभग बारह सौ द्वीपों की मालदीवी दीपमाला भूमध्य रेखा के पास तक पहुंचती है। यहां सीधे सिर पर भूमध्य रेखा का चमकता सूरज। अलग-अलग गहराई वाले ‘लगून’। हर कदम पर बदलता पानी का रंग। नंगी आंखों से दस मीटर की गहराई तक दिखती समुद्र के भीतर की अद्भुत दुनिया। समुद्री जीवन का अपना संसार, कोरल गार्डेन की शक्ल में अद्भुत जीव-जंतु, दुर्लभ पौधे, हैरान करने वाले बैक्टीरिया। जब उत्तर भारत में पारा शून्य को छू रहा था, तब वहां चमड़ी झुलसाने वाली सूर्य किरणें। यूरोप के लोग तो पैसा खर्च कर (टैनिंग) चमड़ी जलाने के लिए ही यहां आते हैं।

सफेद रेत वाला किनारा जहां समंदर में उतरता है, वहां पानी रंगहीन नजर आता है। थोड़ा आगे जाने पर हरा। फिर नीला और बीच समंदर में गहरा नीला। समंदर की गहराई बढ़ने के साथ ही उसका रंग भी बदलता नजर आता है। चारों तरफ
नीले समुद्र के बीच हमारा बसेरा। कोई गाड़ी नहीं। सड़क यातायात नहीं। हवाई जहाज से इस द्वीप पर उतरते हैं। उतना ही बड़ा द्वीप, जितनी बड़ी हवाई पट्टी। जहाज फिसला तो आगे समुद्र! हवाई अड्डे से कहीं भी जाएं तो समुद्र से। अपने कमरे से देखें तो समुद्र की लहरों पर उगते और डूबते सूरज को। बिना समुद्र के यहां कोई जीवन नहीं।

मालदीव का भारत से खासा अपनापा है। एक तो यहां ज्यादातर लोग सदियों पहले केरल से गए हैं। फिर बौद्ध धर्म पहुंचा। बारहवीं सदी में यह मुसलिम देश बना। तीन हजार साल पहले से यहां आबादी के निशान मिलते हैं। सोलहवीं सदी तक पुर्तगाली फिर डच। अंत में अंग्रेजों का उपनिवेश बनने के बाद मालदीव 1965 में आजाद हुआ। हमने आसपास के द्वीप मस्तूल वाली नाव से जाकर देखा। इस आधुनिक युग में पाल लगी नाव पर हम चार सवार बिल्कुल हवा के भरोसे थे। कई किलोमीटर तक समुद्र की छाती पर थपेड़े खाती नाव में हवा को नियंत्रित करते मस्तूल के सहारे हम लौटे।

द्वीप पर टहलते हुए हमें लाल रंग का एक तोते का जोड़ा मिला। वह हमें कौतुक से निहार रहा था। हमने उसे केला खाने को दिया। दोनों हमारे पास आ गए। आज तक किसी पक्षी ने ऐसी घनिष्ठता नहीं दिखाई थी। बचपन में सफेद तोता जरूर देखा था। काकातुआ कहते थे उसे। हर कही बात को वैसे ही दुहराता था। यह भी दुहरा रहा था। पर भाषा स्थानीय थी। यहां सबसे बड़ा आकर्षण है समुद्र के नीचे ‘कोरल रीफ’। पहली नजर में नीचे जाकर देखने पर मूंगे की ये चट्टानें किसी कुशल शिल्पकार या चित्रकार की कड़ी मेहनत से तैयार कृति जैसी लगती है। इसे बनाता है ‘कोरल पालिप्स’ नामक समुद्री जीव। लाखों कोरल पालिप्स की एकजुटता से समुद्र की गहराई में बड़ी-बड़ी कोरल कॉलोनियां बनती हैं, जिन्हें कोरल रीफ कहते हैं। साल भर में एक इंच कॉलोनी बनती है। मालदीव के पास सैकड़ों किलोमीटर ऐसी कॉलोनी है। इसी रीफ में रंग-बिरंगी मछलियां और समुद्र के जीव अपना ठिकाना बनाते हैं।

धरती का सत्तर फीसद हिस्सा समुद्र है। इसके चौदह प्रतिशत हिस्से पर हिंद महासागर है। जो लोग गहरे पानी पैठना नहीं चाहतें, वे ‘स्नोर्केलिंग’ के जरिए पानी की जिंदगी की सच्चाई जान सकते हैं। यानी डाइविंग मास्क लगा और तैरने वाले पंजे पहन पानी की सतह से थोड़ा नीचे जाकर ही आप पानी की जिंदगी से रूबरू हो सकते हैं। हम मालदीव से लौट आए, लेकिन वहां के हर दृश्य ने अब एक दिव्य-सा आभास बन कर मन में घर कर लिया है। ये पंक्तियां मन में कलरव कर रही हैं- ‘दे गया इक दिव्य-सा आभास कोई, पानियों पर लिख गया इतिहास कोई’।

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