Monday, November 18, 2024
Advertisement
  1. You Are At:
  2. News
  3. Articles
  4. Hemant Sharma
  5. Atripta trishna

अतृप्त तृष्णा

Hemant Sharma

इश्क बड़ा बेदर्द होता है। बुढ़ापे का इश्क तो पूछिए मत। वह ‘हिरिस’ है जो रात-दिन सताती है। हिरिस अजर-अमर है। ‘हिरिस’ और आत्मा में इतनी समानता जरूर है कि उन्हें जितना भी मारा जाए मरती नहीं है। “न हन्यते, हन्यमाने शरीरे।” लाख उपायों के बावजूद जो न मिटे उसे ‘हिरिस’ कहते हैं। यह एक मनोभाव है जो मनुष्य का साथ चिता तक नहीं छोड़ता। देवताओं और ऋषि-मुनियों से चली आ रही यह प्रवृति आधुनिक होते इस समाज में भी ज्यों कि त्यों बनी है।

आंत भी नकली। दांत भी नकली। आंख पे चश्मा। बाल सब नकली। दिल में खून सप्लाई करने वाली नलियों में लोहे के ‘स्टंट’। पेशाव के लिए पाइप लगी थैली। घुटने जवाब दे चुके हैं। कान में मशीन। फिर भी ‘हिरिस’ बनी हुई है। दरअसल हिरिस का सीधा सम्बन्ध ‘कपालक्रिया’ से है। जब तक वो नहीं हो जाती मनुष्य की हिरिस बनी रहती है।

आखिर यह ‘हिरिस’ है क्या? इस बोलते हुए शब्द का अर्थ किसी शब्दकोश में नहीं मिलता। पूर्वी उ.प्र. के लोक में उसका खासा चलन है। अगर आप मतलब जानना चाहे तो आसक्ति, हवस, वासना, पिपासा, लालसा, चाहत, तृष्णा, भोगलिप्सा, कामासक्ति, रतिप्रियता जैसे शब्दों के अर्थ को आपस में मिलाकर एक जगह घनीभूत करें। तो आप हिरिस के मतलब के पास पहुंच सकते हैं। ‘वैराग्य शतक’ में भृर्तहरि कहते हैं “बुढ़ापे में बाल बूढ़े हो सफेद हो जाते हैं। इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं। दांत टूट जाते हैं। आंख, कान जीर्ण हो जाते हैं पर तृष्णा और तरूणी बन जाती है।” ऐसी लाचारी से भरी तृष्णा ही ‘हिरिस’ बनती है।

ऐसे ही नायकों पर हक्सले ने ‘गॉडेस एंड द जीनियस’ जैसी विश्व प्रसिद्ध रचना लिखी जिसमें बुजुर्ग वैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च स्कॉलर पर फिदा होकर सनसनी फैला देते हैं। यही हिरिस ‘लोलिता’ जैसे विश्व प्रसिद्ध उपन्यास को जन्म देती है। जिसका हीरो पचास साल की उम्र में एक चौदह साल की लड़की को हासिल करने के लिए उसकी मां से शादी कर लेता है।

हिरिस ऋषि-मुनियों में भी पाई जाती थी। इंद्र को इसका आदिदेवता मान सकते हैं। उनमें सुन्दरियों की मुस्कान और कटाक्ष को ग्रहण करने का अभ्यास भी था और कौशल भी। उनकी सभा ‘सुधर्मा’ सुरा और सुन्दरी के लिए प्रसिद्ध थी। हिरिस से आक्रान्त बूढ़े देवता इस सभा के ‘डेली विजिटर’ थे। तपस्या रत ऋषि-मुनियों की हिरिस जगाने के लिए मेनका को बार-बार पृथ्वी पर भेजा जाता था। उसके जिम्मे युगों से वही काम था। वह अपने रुप लावण्य और कौशल से तपस्वियों का हिरिस जगाती थी। सारे बूढ़े ऋषि-मुनियों के तप नष्ट करने का उपाय नारद के पास था। एक ही उपाय- मेनका, रम्भा, उर्वशी। ऋषि मुनि भी सब कुछ त्याग कर संसार से तो विरत हो जाते। पर वे हिरिस पर काबू नहीं रख पाते। आजकल तो तप ‘अर्थ’ से भी भंग होता है। पर तब काम ही से होता था।

हिरिस को ही ‘ययाति ग्रन्थि’ भी कहते हैं। बुढ़ापे में यौवन की तीव्र कामना की ग्रन्थि। ययाति राजा थे। दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने अपनी बेटी शर्मिष्ठा की शिकायत पर ययाति को श्राप दे दिया कि समय से पहले बुढ़ापा आ जाएगा। ययाति बुढ़े हो गए। उनकी वासनाएं समाप्त नहीं हुई। शुक्राचार्य से माफी मांग उन्होंने अपने श्राप में संशोधन करवाया। रास्ता निकला कि वे किसी युवक की जवानी से अपने बुढ़ापे की अदला-बदली कर सकते हैं। ययाति ने अपने पांच बेटों के सामने अपनी चाहत रखी। चार ने मना कर दिया। पांचवा बेटा पुरू राजी हुआ। बेटे से जवानी प्राप्त कर ययाति ने लम्बे समय तक दैहिक सुखों का भोग किया। बाद में उन्हें अनुभव हुआ कि दैहिक आनन्द से कभी तृप्ती नहीं हो सकती। उन्होंने पुत्र से उधार लिया यौवन लौटा दिया। उसे राजपाठ सौंपा और जंगल में बिला गए। कौरव, पांडव इन्हीं पुरु के वंशज थे।

जब बुढ़ापा जवानी को टक्कर दे। पर पुरूषार्थ से लाचार हो तो समझे हिरिस अपने पूरे आवेग में हैं। इस मनोभाव की कोई ‘एक्सपायरी डेट’ नहीं होती। यह मरते दम तक बनी रहती है। रुस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन अठ्ठावन साल की उम्र में सत्ताइस साल की लड़की से इश्क करते हैं। इटली ते तिहत्तर साल के पूर्व प्रधानमंत्री बर्लुस्कोनी कई सालों से रोज एक नया सेक्स स्कैंडल करते हैं। सेरेना और वीनस विलियम्स के पिता तिहत्तर साल की उम्र में फिर से एक दफा बाप बनते हैं। हरियाणा के सोनीपत जिले में एक सौ दो साल का एक बूढ़ा बच्चे को जन्म देता है। इन सबके पीछे चढ़ती उम्र के बावजूद उनमें बची हिरिस है। गालिब भी कहते हैं “गो हाथों को जुम्बिश नहीं, आंखों में तो दम है। रहने दो अभी सागरों मीना मेरे आगे।” गौतम बुद्ध ने भी इसी तृष्णा को सब दुखों के मूल में माना है।

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि दो हार्मोन हिरिस को जगाते हैं। पुरुषों में 'टेस्टोनस्टे।रोन' तथा महिलाओं में 'इस्ट्रो जेन' इस आग को भड़काते हैं। यह दौर क्षणिक होता है। रक्त में पाए जाने वाले ‘डोपामिन’ हार्मोन को आनंद का रसायन भी कह सकते हैं। यह परम सुख की भावना उत्पन्न करता है। हिरिस के जगते ही कुछ और अच्छा नहीं लगता। बस लागी लगन वाला भाव होता रहता है। इस अवस्था का रसायन है ‘ऑक्सीटोसिन’ तथा ‘वेसोप्रेसिन’ निकटता का हार्मोन, जुड़ाव का रसायन। हिरिस अगर आग है तो यह उसका पेट्रोल।

जवानी के जाने और बुढ़ापे के आने का पता बहुत कम लोगों को वक्त पर चलता है। मालूम भी चल जाए तो अकसर लोग मानने को तैयार नहीं होते। मेरे एक मित्र हैं शर्मा जी। नौकरी को ताक पर रखकर हर हफ्ते डेढ़ हजार किलोमीटर की यात्रा कर वे अपने घर जाते हैं। बिल्कुल उसी अंदाज और उत्तेजना में जैसे तुलसीदास पहुंचते थे। शर्मा जी के इस जीवन में अब कुछ बचा नहीं है पर वे अपने पुरुषार्थ का पोस्टर स्वयं चिपकाते हैं। ऐसी भाग-दौड़ और उछल-कूद मचा कर मित्रों ने उन्हें समझाया नौकरी ईमानदारी से करनी चाहिए। पर हिरिस के आगे उनकी समझ कुंद पड़ गई है। वे समझने को तैयार नहीं हैं। खाट पर पड़े-पड़े ज्यादातर बुढ़ापा काटने वालों के जीवन में भी दो ही अनिवार्य तत्व हैं- एक निंदा रस, दूसरे हिरिस। इसी के सहारे उनका बचा जीवन चलता है।

हमारे पंडित जी कहते हैं “चलता आदमी और दौड़ता घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता।” शायद इसीलिए पंडित जी दौड़ने के लिए कभी बैंकाक, कभी गोवा जाते हैं। गोवा से लौटे तो पैर तुड़वाकर। पंडित जी उत्साही हैं। उनकी हिरिस हिलौरे मारती है। उनका उत्साह देख मेरी भी हड्डियां जोर मार रहीं हैं। पर इस बुढ़ापे का क्या करुं? जो बेवक्त आ गया है। बुढ़ापे के आने के लक्षण सिर्फ आंख, कान, नाक, दिमाग के जीर्ण होने से समझ नहीं पड़ते। इसकी कई अवस्थाएं  हैं। हमारे तिवारी जी बताते हैं। पहली अवस्था में व्यक्ति नाम भूलने लगता है। दूसरी में चेहरा भूलने लगता है। तीसरी अवस्था में पैंट की जिप बंद करना भूलता है। और चौथी में जिप खोलना ही भूल जाता है। तिवारी जी खुद को तीसरी अवस्था में पाते हैं। उनमें अभी उम्मीद कायम है। तिवारी जी के एक बनारसी जो नाद ध्वनि के मर्मज्ञ भी हैं। उनकी हिरिस भी कुछ ऐसी ही है। जब वे कुछ नहीं कर पाते तो ‘चिकोटी’ काट कर ही अपनी हिरिस शांत करते हैं।

तृष्णा अतृप्त है। कभी मर नहीं सकती है। पर शरीर तो मरेगा। हम यह क्यों नहीं मानते? सिकंदर जब पूरी दुनिया जीत रहा था तो उससे पूछा गया। इसके बाद क्या होगा? वह दुखी और उदास हो गया। तो क्या? अतृप्ती किसी को सुख दे सकती है?

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement