‘अंधेर नगरी’ आज से सवा सौ साल पहले लिखी गई थी। वहां का राजा चौपट था। वक्त बीता। राजा बदले। पर ‘अंधेर नगरी’ आज भी प्रासंगिक है। यह हमारे प्रौढ़ होते लोकतंत्र का एक नमूना है। पिछले दिनों रामपुर जाना हुआ। वही रामपुर, जो कभी नवाबों, रामपुरी छुरी और अब आजम खां और थोड़ा-बहुत जया प्रदा के लिए जाना जाता है। वहां जाकर मेरी धारणा मजबूत हुई कि चौपट राजा आज भी कायम है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की कालजयी कृति है ‘अंधेर नगरी’। उन्होंने यह कथा इलाहाबाद में लिखी थी। चौपट राजा यहीं का था। उसने उल्टा किला बनवाया था, जिसके अवशेष आज भी ‘झूंसी’ में मौजूद हैं। यह नाटक उपभोक्तावादी समाज के तर्कहीन बाजार के संदर्भ में लिखा गया है, जहां भाजी और खाजा, दोनों टके सेर हैं। कहानी सभी जानते हैं। फिर भी, यों है कि अंधेर नगरी के राजा के दरबार में एक फरियादी आता है, जिसकी बकरी दीवार गिरने से मर गई है। इसमें पहले दीवार को दोषी ठहराया जाता है। उसके बाद क्रमश: दीवार के मालिक कल्लू बनिया, उसे बनाने वाले मिस्त्री, चूना वाले, कसाई, गड़ेरिया और फिर आखिर में कोतवाल को फांसी की सजा सुनाई जाती है। फांसी का फंदा चूंकि बड़ा निकला, सो कारिंदों ने एक मोटे-तगड़े साधु को पकड़ा, जिसने अपने गुरु की सलाह से फांसी के लिए शुभ मुहूर्त की चाल चली और उसमें मूर्ख और अहंकारी राजा फंसा और फांसी पर चढ़ गया।
रामपुर में मुझे यह नाटक मूर्त रूप में दिखा। अब राजे-रजवाड़ों और नवाबों की जगह दूसरे ‘भारत भाग्य विधाता’ आए हैं। फिर अगर चौपट राजा रह सकता है, तो आजम खां क्या बुरे हैं! ताकतवर वजीर हैं। एक दिन रामपुर में भयानक ट्रैफिक जाम था। मंत्री जी घंटों इसी जाम में फंसे रहे। आग-बबूला मंत्री ने जाम की जांच के आदेश दिए। ट्रैफिक पुलिस के अफसर फौरन उनके सामने पेश हुए। मंत्री तड़पे- ‘ट्रैफिक की इतनी बदइंतजामी!’ पुलिस वालों ने कहा कि साहब सड़क संकरी है। हम क्या कर सकते हैं? लोक निर्माण विभाग का इंजीनियर बुलाया गया। उसने कहा- हम कैसे सड़क चौड़ी करें, अतिक्रमण चौतरफा है। नाली की वजह से सड़क चौड़ी नहीं हो पाई। नाली के लिए नगर निगम का अफसर बुलाया गया। मंत्री जी ने नगर निगम के अधिशासी अधिकारी को जाम के लिए जिम्मेदार ठहरा मुअत्तल कर दिया। ट्रैफिक जाम की वजह नाली बताई गई। यानी, चौपट राजा कोई व्यक्ति नहीं, परंपरा है।
साहित्यकार युगद्रष्टा होता है और साहित्य कालजयी। इस घटना से यह साबित होता है। सत्ता का मिजाज जैसा तब था, वैसा आज है। यों भी, विवादों से मंत्री जी का चोली-दामन का रिश्ता रहा है। पिछले दिनों अमेरिका में उनकी ‘पूरी तरह से’ जांच हो गई। अमेरिकियों के हाथ राजा के गिरेबान तक पहुंचे, यह कैसे गवारा हो। उनके भीतर का अहं जागा। तब से जहां जाते हैं, हंगामा करते हैं। कभी कहते हैं कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, तो कभी पंचायत के ऐसे सनक भरे फैसले का वे समर्थन करते हैं जिसमें यह फरमान सुनाया जाता है कि ‘महिलाएं फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं!’
एक रोज हावड़ा मेल पर चढ़े तो बिस्तर ठीक नहीं था। नतीजतन, सेवा में लगे रेल कर्मचारियों को मुर्गा बना दिया। रेलकर्मी हड़ताल पर चले गए। एक और मजेदार किस्सा पिछले दिनों सामने आया। मंत्री जी के काफिले की एक गाड़ी में पुलिस वाले बैठे थे। गाड़ी नगर विकास विभाग की थी। मंत्री जी इस बात पर भड़क गए कि अगर पुलिस सुरक्षा में लगी है तो पुलिस विभाग ने गाड़ी क्यों नहीं भेजी। हाइवे पर पुलिसवालों को उतार बीस किलोमीटर पैदल वापस भेज दिया। उनके किस्से भारतेंदु बाबू के प्रहसन के कान काटते हैं। कोई भी मंत्री राष्ट्रपति या राज्यपाल के ‘प्लेजर’ तक मंत्री रहता है। पर आजम भाई किसी को कुछ समझते नहीं। दो-दो राज्यपालों पर अपने खिलाफ षड्यंत्र का आरोप लगा चुके हैं। किसी ने मजाक किया कि मंत्री जी की यह हनक तब है, जब उन्होंने अधूरी शपथ ली थी। पूरी लेते तो न जाने क्या करते!
ताजा मिसाल। आजम खां ने एक आरटीओ की मार्फत सांसद जया प्रदा की कार से लालबत्ती उतरवा दी। सब जानते हैं सांसद को कार पर लालबत्ती लगाने का अधिकार है। लेकिन राजा के कोतवाल को यह कैसे बर्दाश्त होता! सो, उसने लालबत्ती ही नहीं उतारी, सांसद की कलाई भी पकड़ ली। सांसद ने मुकदमा किया। सुनते हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंत्री साहब को भी उसमें तलब किया है।
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