‘अंधेर नगरी’ आज से सवा सौ साल पहले लिखी गई थी। वहां का राजा चौपट था। वक्त बीता। राजा बदले। पर ‘अंधेर नगरी’ आज भी प्रासंगिक है। यह हमारे प्रौढ़ होते लोकतंत्र का एक नमूना है। पिछले दिनों रामपुर जाना हुआ। वही रामपुर, जो कभी नवाबों, रामपुरी छुरी और अब आजम...
सुप्रीम कोर्ट ने सी.बी.आई को सरकार का तोता क्या कहा? सरकार में बैठे लोगों के हाथों से तोते उड़ गए। खुद सी.बी.आई प्रमुख ने रोते हुए माना कि हां हम तोता हैं। कोर्ट ने सही कहा है। देखिए सी.बी.आई प्रमुख ने कितनी जल्दी कोर्ट की बात रट ली। कहने लगे हां हम ...
इश्क बड़ा बेदर्द होता है। बुढ़ापे का इश्क तो पूछिए मत। वह ‘हिरिस’ है जो रात-दिन सताती है। हिरिस अजर-अमर है। ‘हिरिस’ और आत्मा में इतनी समानता जरूर है कि उन्हें जितना भी मारा जाए मरती नहीं है। “न हन्यते, हन्यमाने शरीरे।” लाख उपायों के बावजूद जो न मिटे ...
सच मानिए, अब मुहब्बत के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची है। प्रेम से वंचित होते इस समाज में इश्क के रास्ते की अड़चन सरकार होगी। अब तक प्रेम के शत्रु खाप पंचायतें, हिन्दुत्व के ठेकेदार, दरोगा और जाति-मजहब के नियमों से संचालित स्वयंप्रभु संगठन थे। दुनियाभर के...
आखिर शिव में ऐसा क्या है, जो उत्तर में कैलास से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक वे एक जैसे पूजे जाते हैं। उनके व्यक्तित्व में कौन-सा चुंबक है, जिसके कारण समाज के भद्रलोक से लेकर शोषित, वंचित, भिखारी तक उन्हें अपना मानते हैं। वे सर्वहारा के देवता हैं। रा...
नोयडा में मेरे घर के बाहर पेड़, फूलों से लद गए हैं। नीम की नई कोपलें फूट गई हैं। कचनार और मौलश्री की कली चटक रही है। बेला रात में वैसे ही खिल रही है। जैसे शरद में पारिजात। पीपल, तमाल और पलाश में नए चिकने पत्ते आ गए हैं। टेसू के रंग वातावरण में छा गए ...
घुमक्कड़ी वृत्ति का अपना ही सुख है। निकलिए कुछ और ढूंढ़ने, मिल जाता है कुछ और। प्रकृति की विविधता मन को तरोताजा करती है तो यात्रा के दौरान नए अनुभव बुद्धि को मांजते हैं। हमारे बचपन में छुट्टी का मतलब ननिहाल जाना था। इसके पीछे अर्थशास्त्र था और समाजशास्...
सितार तार-तार हो गया। पंडित रविशंकर परमशक्ति में वैसे ही लीन हो गए, जैसे वे सितार की धुन में लीन होते थे। सुध-बुध खोकर। बनारस से उनका गहरा नाता था। यहीं जन्में, पले, बढ़े। नटराज की गलियों में नृत्य के ग...
कुछ घटनाऐं कभी भूलती नहीं। छ: दिसम्बर भी ऐसी ही कड़वी याद है। हमारी गंगा जमुना तहजीब पर एक जख्म। इस बहुलतावादी लोकतंत्र के मुंह पर ऐसी कालिख, जो बीस बरस में नहीं धुल पाई। उस रोज अयोध्या में बाबरी ढांचे की शक्ल में हमारे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्य ...
पुराने सामानों की सफाई में मुझे एक चिट्ठी मिली। प्रेम पत्र था वह। उसका रंग गुलाबी से पीला पड़ गया था। पर खुशबू बनी हुई थी। मैंने कोई सत्ताइस बरस पहले इसे अपनी पत्नी को लिखा था। वे विश्वविद्यालयी दिन थे। तब वे पत्नी भी नहीं बनी थीं। विवाह के बाद पत्र ...
भोगा हुआ यथार्थ। यह यथार्थ की सबसे भरोसेमंद स्थिति है। सुने हुए और देखे हुए यथार्थ से ज्यादा। हर यथार्थ को जानने के लिए उसे भोगना जरूरी नहीं है। मुसीबत में डालने वाला होता है। यह भी सही है अगर भोगेंगे नहीं तो आपकी जानकारी ‘फर्स्ट हैण्ड’ नहीं होगी।...
दीपावली पर खूब मिठाइयां खाना। बांटना और बटोरना। ऐसा बचपन से देखता आया था। लेकिन इस दफा अपनी दीपावली बिना मिठाई के बीती। क्योंकि अखबार में यह खबर पढ़ ली थी कि इस साल दीपावली पर छ हजार करोड़ का मिठाइयों का कारोबार हुआ। और इसमें सत्तर फीसदी मिठाइयां मिल...
दुष्टता आजकल राजधर्म है और दुष्ट सर्वव्यापी। दुष्टजन सज्जनों को हमेशा से त्रस्त करते आए हैं। सच पूछिए तो जमाना हमेशा से दुष्टों का ही रहा है। वे निराकार ब्रह्म की तरह हर कहीं मौजूद रहते हैं। शायद इसीलिए रामचरित्र का बखान करने से पहले तुलसीदास को भी ख...
न जाने क्यों हम अपनी परम्परा और संस्कार भूलते जा रहे हैं। रॉबर्ट वाड्रा ने कुछ सौ करोड़ रुपए क्या कमा लिए। लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया। सब यह भूल गए कि इस देश में दामाद के खातिर कुछ भी कर गुजरने की प...
आजकल मैं परेशान हूं। मेरी मुसीबत की नई वजह मेरे सफेद बाल हैं। बीच उम्र में ये सफेद बाल मेरी दुर्दशा करा रहे हैं। मैं अपने जिन मित्र के साथ सुबह टहलने जाता हूं। उनके बाल पूरे काले हैं। दो तीन दिन मैं टहलने नहीं जा पाया। पार्क में मिलने वाली एक महिला न...
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